
राजा विक्रमादित्य का न्याय –The Justice of Vikramaditya
हम सभी विक्रमादित्य के नाम से परिचित हैं | राजा विक्रमादित्य अपने न्याय और दयालुता के लिए जाने जाते थें | उनके राज्य में सभी लोग खुश रहते थे, कोई भी दुखी नहीं था | सभी लोग उन्हें पसंद करते थे और उन्हें अपने राजा पर गर्व महसूस होता था |
एक बार, विक्रमादित्य ने नदी के किनारे एक महल बनवाने का फैसला किया | उन्होंने अपने मंत्रियों को साइट का सर्वेक्षण करने और काम शुरू करने का आदेश किया | मजदूरों को काम पर रखा गया और कुछ ही दिनों में महल भी बन कर तैयार हो गया | राजा को महल दिखाने से पहले मंत्री ने एक अंतिम निर्णय लिया |
मंत्री ने महल को देखकर कहा – शानदार | अचानक उसकी नज़र किसी चीज़ पर पड़ी और वह चिल्लाया – वह क्या है | मैंने पहले उसे नहीं देखा | सभी मजदूरों और सैनिकों देखने लगे | सबने देखा कि महल के मुख्य द्वार से कुछ कदम की दूरी पर एक झोपड़ी थी | मंत्री ने गुस्से से चिल्लाकर पूछा कि यह झोपड़ी किसकी है |
एक सैनिक ने मंत्री से कहा महोदय यह झोपड़ी एक बूढ़ी औरत की है | वह काफी लम्बे समय से यहाँ रह रही है | मंत्री झोपड़ी के पास गया और उसने उस बूढ़ी औरत से बात की | मंत्री ने उससे कहा कि मैं तुम्हारी झोपड़ी खरीदना चाहता हूँ | बूढ़ी औरत ने जवाब दिया कि महोदय, मुझे दुःख है लेकिन मैं आपके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती | मेरी झोपड़ी मुझे मेरे जीवन से भी ज्यादा प्यारी है | मैं अपने स्वर्गीय पति के साथ इसमें रहती हूँ और मैं आगे भी इसी झोपड़ी में रहना चाहती हूँ |
मंत्री ने उसे यह बताने की कोशिश की कि उसकी झोपड़ी बनाए गए नए महल की शोभा को ख़राब कर देगी | लेकिन बूढ़ी औरत अपनी रुख में मजबूत थी और वह किसी भी अंजाम और किसी भी सजा का सामना करने के लिए तैयार थी | उसने अपनी झोपड़ी बेचने से बिलकुल मना कर दी | तब मामला राजा के पास ले जाया गया |
बुद्धिमान और उदार राजा ने थोड़ी देर सोच-विचार करने के बाद कहा कि – बूढ़ी औरत की झोपड़ी वहीँ रहेगी, जहाँ पहले से है | यह केवल नए महल की सुन्दरता में जोड़ दिया जाएगा | फिर मंत्री की ओर देखते हुए राजा ने कहा कि हमें किसी भी वस्तु को बदसूरत नहीं समझना चाहिए | क्या पता वह वस्तु किसी के लिए बेहद मूल्यवान हो | इस फैसले के बाद लोगों को एहसास हुआ कि क्यों उनके राजा को सभी लोगों और अन्य सभी पड़ोसी साम्राज्यों द्वारा सम्मानित किया गया था |